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‘जैनागम सारांश’ (आगम बत्तीसी)

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जैन तत्व दर्शन

जैन लोक स्वरूप

वरिष्ठ स्वाध्यायी, तत्त्व चिंतक, “जिन शासन रत्न”

श्री विमल कुमार नवलखा

प्रस्तुत ‘जैनागम सारांश’ ( आगम बत्तीसी) को 4 भागों में विभक्त कर अपने आगम कौशल्य से ग्रंथ के रचनाकर तत्त्वचिन्तक आगमों के अध्येता श्री विमल कुमारजी नवलखा का जन्म वि.सं. २०११ के कार्तिक सुदी ५ ज्ञान पंचमी दि. १-११-१९५४ को भीलवाड़ा जिलान्तर्गत आसीन्द तहसील के जगपुरा ग्राम में हुआ ।

पुण्योदय से आप अनेकों आचार्य एवं विद्वानों संत मुनिराजों एवं विदुषी साध्वी रत्नों के सम्पर्क में आये। गुरुदेवों के शुभाशीर्वाद से अपनी प्रामाणिकता के बल पर व्यावसायिक क्षेत्र में प्रतिष्ठित होकर परिवार व समाज की सेवा में अग्रसर बनें। आपकी धार्मिक भावना एवं श्रुत सेवा की रूचि प्रबल से प्रबलत्तर होती गई ।

सन् १९७५ में आप श्री स्वाध्यायी संघ, गुलाबपुरा के सक्रिय एवं कर्मठ सदस्य बनें तथा पूरे भारतवर्ष में प्रत्येक राज्य के प्रमुख नगरों में पधारकर पर्युषण पर्वाराधनार्थ सेवाएं प्रदान की। जैन समाज के लिए अति उपयोगी जैनागमों के हिन्दी सारांश तथा जैन तत्त्व दर्शन के दो खण्ड (भगवती, प्रज्ञापना एवं विविध सुत्तागमों के थोकड़े ) तथा अन्तर्मन के मोती ( पयुर्षण प्रवचनोपयोगी ) जैनागमों में मध्यलोक एवं जैन धर्म में उत्कृष्ट तप संलेखना संथारा जैनागमों में लोकस्वरूप आदि जैन-धर्म-दर्शन के लिए अप्रतिम देन है। आपकी इस श्रुत-सेवा से सम्पूर्ण जैन समाज गौरवान्वित हुआ है। श्रुत सेवा से प्रभावित होकर दिनांक 7 जनवरी 2024 को जोधपुर में विधायक श्री अतुल जी भंसाली द्वारा “जिनशासन रत्न’ की उपाधि से अलंकृत किया है।

श्री विमल कुमारजी नवलखा के पुज्यनीय पिताजी श्रीमान् फतेहलालजी सा. नवलखा एवं मातृश्री श्रीमती उगमदेवीजी नवलखा भी अत्यन्त धर्म परायण, महान् व्यक्तित्व के धनी है । धर्मपत्नि श्रीमती सुशीलादेवीजी नवलखा की सेवा तो अतुल्य है। इन्होंने दो-दो मासखण की तपस्याएं भी की हैं । आज भी कीम पीपोदरा में जैन संतमुनिराजों एवं महासतियांजी की सेवा में अनवरत लगे रहते हैं। समाज की सेवा तो इस परिवार का प्रमुख गुण है। श्री विमलजी नवलखा कई वर्षों से दक्षिण गुजरात राजस्थान स्थानकवासी जैन महासंघ के मंत्री के रूप में समाज सेवा में अग्रसर हैं ।

इनके पाँच पुत्र रत्न हैं । श्री विनय कुमार, तरूण कुमार, चेतन प्रकाश, विकास एवं लोकेश ये पाँचों ही सुपुत्र अत्यन्त धर्मानुरागी, निर्व्यसनी, सदाचारी और समस्त सद्गुणों से युक्त चरित्रनिष्ठ सुश्रावक युवा रत्न हैं । साधुसंतों की सेवा, समाज की सेवा तो मानों विरासत से मिले सद्गुण हैं। समाज सेवा में हमेशा अग्रसर रहता यह सम्पूर्ण परिवार वास्तव में समाज के लिए एक उदाहरण है, दृष्टान्त है । श्री विमलजी की दो बहिनें श्रद्धेया शीलप्रभाजी म.सा. एवं श्रद्धेया सत्यप्रभाजी म.सा. आचार्य श्री विजयराजजी म.सा. के सानिध्य में संयम-साधना में निरंतर अग्रसर है।

जिन शासन की सेवा में अग्रसर इस परिवार की पारिवारिक और सामाजिक समृद्धि हमेशा बनी रहे ।